जीसस के बारे में एक बड़ी ही प्रसिद्ध कहानी है कि उन्होंने एक बार दस कोढ़ियों का कोढ़ ठीक कर दिया था. और जब वे मुड़े तो एक व्यक्ति को छोड़कर बाकी सब जा चुके थे… उसमें जीसस को धन्यवाद देने की विनम्रता थी.
तब जीसस ने उस व्यक्ति से कहा, “मैंने कुछ भी नहीं किया है…”
इस कहानी से हम सबको क्या सबक मिलती है:-
- ज्यादातर लोग अहसान-फरामोश होते हैं ?
- अहसान मानने वाला इंसान मुश्किल से मिलता है…
- जीसस की तरह हमें भी किसी से अहसान मानने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए…
- जीसस ने सचमुच उन्हें नया जीवन दिया और कहा, “मैंने कुछ भी नही किया…”
यह एक छोटी-सी कहानी है, लेकिन हम सबको सोचने पर मजबूर करती है… हम किसी व्यक्ति की थोड़ी सी मदद के बदले बार-बार यही बात दोहराते रहते हैं- “देखो, मैंने इसके लिए कितना कुछ किया..” हम अपने इस परोपकार को कितना ज्यादा बढ़ा-चढ़ा देते हैं…
हम लोगों को अक्सर ऐसी बातें भी कहते हुए सुनते हैं, “अगर मैं नही होता तो आज यह आदमी सड़क पर होता…” इन बातों में सचमुच कितना अहंकार है…
दोस्तों, अपनी लाइफ में एकबार पीछे मुड़कर देखिये, और उन लोगों को याद करने की कोशिश कीजिये, जिनका हमारी जिन्दगी पर अच्छा असर पड़ा है… ऐसे लोगों में आप अपने माँ-बाप, शिक्षक, दोस्त या किसी भी व्यक्ति को देख सकते हैं जिसने हमारी सहायता के लिए अपना भरपूर समय दिया है… शायद हम सबको बस यही लगे कि वे बस अपना कर्तव्य पूरा कर रहे थे. लेकिन हकीकत में ऐसा नही है… उन्होंने हमारे लिए अपनी इच्छा से, और पूरे दिल से अपने समय, मेहनत, पैसे और कई जरूरी चीजों का त्याग किया है…. उन्होंने हमारे प्रति प्रेम के कारण ही ऐसा किया है, न कि किसी प्रकार से धन्यवाद पाने के लिए… किसी मोड़ पर व्यक्ति इस बात को महसूस करता ही है कि उसकी जिन्दगी को सँवारने में कितनी मेहनत की गयी है…. इसीलिए मैं यह कह सकता हूँ कि उन्हें धन्यवाद देने के लिए अब भी देर नहीं हुई है…
You Can Win किताब के हिंदी अनुवाद से प्रेरित