लेकिन उनमेँ से एक घड़े मेँ एक बड़ी समस्या थी। एक घड़ा तो बहूत ही सुंदर और मजबूत था, पर दुसरे घड़े मेँ एक छोटा सा छेद था जिससे पानी गिरता रहता था। वह व्यक्ति उस फुटे घड़े को अपनेँ बायीँ ओर लटकाकर चला करता था। जब भी वह व्यक्ति कुएं से पानी निकालकर अपनेँ मालिक के घर तक पहूँचता तो उस फुटे हूये घड़ोँ की वजह से उसके मालिक को कम पानी ही मिलती थी।
यही सिलसिला लगभग तीन वर्षोँ तक चलता गया। अब सुंदर और मजबुत घड़े को अपनी खुबियोँ और अपनी काबिलियत के बल पर बहूत घमंड होनेँ लगा था और बेचारा फुटा घड़ा अपनेँ पर मन ही मन शर्मिन्दा होता था।
एक दिन फुटा घड़ा अपनेँ आप पर काबु न रख पाया और शर्मिन्दा होकर खुब रोनेँ लगा और उसनेँ अपनेँ पानी ढोनेँ वाले मालिक से कहा कि मालिक आप मुझे माफ कर दीजिये क्योँकि मैनेँ कभी भी अपनेँ काम को ठीक से नहीँ किया, ऊपर से मेरी वजह से हमेशा आपको कम पानी ही नसीब होता है इसके लिये मैँ बहूत शर्मिन्दा हूँ मूझे आप क्षमा करेँ।
मालिक नेँ उस घड़े से कहा कि शायद तुमनेँ कभी भी एक चीज पर गौर नहीँ किया और उस पर कभी ध्यान भी नहीँ दिया कि ये रास्ते मेँ बायीँ तरफ जितनेँ भी फुल के गमले और फुल की क्यारियाँ लगी हैँ वो सब तुम्हारी तरफ ही उगे हूये हैँ, उस मजबुत घड़े की तरफ नहीँ। मैँनेँ तुम्हारी तरफ के रास्ते पर इन खुबसुरत फुलोँ के बीज को डाल दिया था और तुम तीन वर्षोँ से इन पर पानीँ सीँचते आ रहे हो। और इन्हीँ सुन्दर फुलोँ के गुलदस्तोँ से मैँ अपनेँ मालिक का घर और अपनेँ ईश्वर का मंदिर सजाता हूँ जिससे दोनोँ हमसे बहूत खुश हैँ। यदि तुम फुटे हूए नहीँ रहते तो न ही आज मालिक के घर और ईश्वर के मंदिर की इस प्रकार से सजावट हो पाती।
दोस्तोँ हम सभी के अंदर बहूत सारी कमियाँ हैँ। और हम सब उस फुटे हूये घड़े के समान हैँ यदि हम सब अपनीँ कमजोरियोँ से न डरकर सिर्फ अपना कर्म करते जायेँ तो यकीनन ईश्वर हमारी कमजोरियोँ को हमारी शक्ति मेँ बदल देँगे। हमेँ, हमारे पास जो भी है उसका शुक्रिया अदा करना चाहिये न कि हमारे पास क्या नहीँ है उसी को सोँचकर रोना चाहिये। अपनेँ कमजोरियोँ से डरकर रोनेँ की बजाये अपनेँ कमजोरियोँ को दुर करनेँ का प्रयास कीजिये और सिर्फ अपना कर्म करते जाइये।