बिटिया ने बताया जीवन का मूल मंत्र..

 

जीवन दुश्वारियों का ही दूसरा नाम है। इसमें उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। पर

जो हमेशा तकलीफ में जी रहे होते हैं, उन्हें लगता है कि उनके सामने ही ऐसी

तकलीफें क्यों आती हैं? ऐसी बात नहीं है, तकलीफ सभी के सामने आती हैं। पर हमें

सामने वाले के अच्छे दिन याद रहते हैं और हमारे बुरे दिन। अपने आसपास आप किसी

को भी देख लें, उनके बुरे दिन में क्या आप उनके साथ थे? आप यह तय करें कि आप

कितनों के बुरे दिनों के साथी रहे हैं? अच्छे दिनों का साथी बनने के लिए हर

कोई तैयार है, पर बुरे दिनों का साथी नहीं मिलता। जिसने भी बुरे दिनों में साथ

निभाया, वही अच्छे दिनों का सबसे विश्वसनीय साथी होता है। विपदाएं तो जीवन में

आती ही रहती हैं। इसके बिना जीवन सच्चे अर्थो में जिया ही नहीं जा सकता।

वास्तव में विपदाएं हमारी परीक्षा लेने के लिए आती हैं। ताकि हम अगली विपदा,

जो इससे भी खतरनाक है, उसका सामना कर सकें। पर विपदाओं को हम एक मुसीबत ही

मानते हैं। विपदाओं से सबक लिया जाए, तो इससे बड़ा कोई सहायक हो ही नहीं सकता।

दु:ख तो अपना साथी है, यह मानकर चला जाए, तो विपदा हमें अपने मित्र की तरह

लगेगी।

जीवन में बहुत ही झंझावात है। परेशानियां आते ही रहती हैं। एक के बाद एक। कभी

तो लगातार। कुछ लोग सोचते हैं कि यह मुसीबत मुझ पर ही क्यों आती है? ऐसी बात

नहीं है, मुसीबत हम यह सबक देने आती है कि आपको अभी और भी मुश्किलों का सामना

करना है। इन पंक्तियों का लेखक भी एक दिन जीवन में आने वाली दुश्वारियों से

निराश हो गया था। बिस्तर पर अधलेटे वह कुछ सोच रहा था। कभी आंखें गीली हो

जातीं, कभी चेहरा तैश से कड़ा हो जाता। ऐसे में 12 वीं में पढ़ने वाली बिटिया

उसके पास आई।

क्या बात है पापा! इतना क्या सोच रहे हो?

कुछ नहीं बेटा! बस यूं ही?

कुछ तो बात है पापा, वैसे आप तो निराश कभी नहीं होते?

हां बेटा! पर इस बार मुश्किलों ने मुझे बुरी तरह से झिंझोड़ दिया है।

पापा! एक बात कहूं?

हां बेटा बोलो

आपने कभी ईसीजी मशीन में किसी के दिल की धड़कन के कम्पन को देखा है?

हां देखा है।

ध्यान से देखा है?

हां बेटा ध्यान से देखा है।

अगर आपने ध्यान से देखा होता, तो इस तरह से निराश नहीं होते।

क्या मतलब तुम्हारा?

वही तो कह रही हूं पापा। आप ईसीजी में दिल की धड़कन के कम्पन को ध्यान से

देखेंगे, तो पता चलेगा कि जब तक लाइनें ऊपर-नीचे हो रही हैं, तब तक आपकी हालत

सामान्य

है। जैसे ही लाइन सीधी हो जाती है, तो डॉक्टर चिंतित हो जाते हैं, वे

कहते हैं कि सीधी लाइन वाली स्थिति खतरनाक होती है।

तुम कहना क्या चाहती हो बेटा?

बस पापा, जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, तो समझो जिंदगी सामान्य है। यदि
जीवन सपाट हो जाए, तो समझो बुरे दिन आ रहे हैं।

बिटिया के इस छोटे-से तर्क ने मुझे भीतर से हिला दिया। कितनी आसानी से कितनी

बड़ी बात बोल गई बिटिया। अभी तो उसकी उम्र ही क्या है? मात्र 17 वर्ष ही ना?

अभी से उसने जिंदगी का फलसफा समझ लिया? कितनी गंभीर बात को उसने कितने सरल

तरीके से समझा दिया। उसके बाद चिंतन शुरू हुआ, तो यही पाया कि  विषमताएं जीवन

का एक आवश्यक अंग हैं। इसके बिना सरल और आसान जीवन की कल्पना ही नहीं की जा

सकती। कई लोग हमें ऐसे मिलेंगे, जिनके पास बेशुमार दौलत है, बड़ा सा घर है। कई

फैक्टीरियां हैं। किसी भी चीज की कोई कमी नहीं, हम सोचते हैं कि कितना अच्छा

जीवन है, उनका। काश हमें भी ऐसा ही जीवन जीने को मिलता। पर यदि आप उस

ऐश्वर्यशाली व्यक्ति के साथ एक दिन, केवल एक दिन बिताकर देखो। कितना

संघर्षपूर्ण जीवन है उसका। कदम-कदम पर बाधाएं उसका स्वागत करती हैं।

परेशानियां तो उनके जेब में होती हैं। समय

बिलकुल नहीं होता उनके पास। न भोजन

के लिए समय, न पत्नी-बच्चों के लिए समय। दोस्तों के लिए समय निकालना तो बहुत

ही मुश्किल होता है। ऐसे में वह चाहकर भी कुछ ऐसा नहीं कर सकता, जो वह अब तक

करता आया था। इससे तो अच्छा है वह गरीब, शाम को थका-हारा आकर अपने बच्चों से

बतिया तो लेता है। पत्नी पर कुछ गुस्सा होकर उसे मना तो लेता है। कभी-कभी

सस्ती सी साड़ी लाकर पत्नी को खुश कर देता है या फिर बच्चों को कहीं घुमाने ले

जाता है, सभी खुश हो जाते हैं। परेशानियां इनके जीवन में भी कम नहीं होती। पर

वे उसका सामना करने में नहीं हिचकते। वास्तव में उनकी परेशानियां केवल धन की

कमी के कारण होती हैं। कुछ धन हाथ में आता है, तो कुछ परेशानियां कम हो जाती

हैं। फिर धन की प्रतीक्षा की जाती है। ताकि और भी मुसीबतों का सामना किया जा

सके। दूसरी ओर ऐश्वर्यशाली लोगों के पास जिस तरह की मुश्किलें होती हैं, वह

बहुत ही खतरनाक होती हैं। उनका एक निर्णय कई लोगों के जीवन में अंधेरा कर सकता

है। उन्हें पूरे विस्तार के साथ सोचना होता है। दिमागी कैनवास बहुत बड़ा रखना

होता है। इनकी चिंता में केवल वे ही नहीं, बल्कि बहुत सारे उनके साथी या कह

लें, मजदूर या फिर कर्मचारी

होते हैं, जिनके हित के लिए उन्हें लगातार सोचना

होता है। जो उनके लिए नहीं सोच पाते, वे कुछ दिन बाद जमीन पर होते हैं।

क्योंकि तब उनके पास सिवाय पछताने के और कुछ नहीं होता।

यह मान लो कि हमें दु:ख ने ही पाला है, इसके बिना हमारा जीवन कोई जीवन नहीं

है। दु:ख का साथ हमेशा हमारे साथ होना चाहिए, इससे हमें जीवन जीने की रोशनी

मिलती है। सुख तो कुछ दिन का मेहमान होता है, आता है, फिर चला जाता है। दे

जाता है कुछ यादें, जिनके बिना भी जिया जा सकता है। दु:ख में ही छिपा है जीवन

का सच्चा  सुख। दु:ख की यादें हमें संजोकर रखनी चाहिए, इसमें ही छिपा होता है

जीवन का सत्य। यही है जीवन सत्य। द्रु:ख के साथी लंबे समय तक साथ रहते हैं,

सुख के साथी कभी भी साथ छोड़ सकते हैं। कठिन राहों से गुजरना मुश्किल किंतु

चुनौतीभरा होता है। सपाट जीवन में तो कई साथी होते हैं, जो थोड़ी सी

परेशानियों में दूर हो जाते हैं। जीवन के अंधेरे आखिर हमें कब तक छलेंगे,

निराशा का यह अंधेरा आशा के सूरज के आते ही छंट जाएगा। बस थोड़ा सा धैर्य रखना

होगा, क्योंकि उजाला होने के पहले का अंधेरा बहुत ही गहरा होता है। वह हमें

तोड़ने की पूरी ताकत लगा देता है। यहीं हमें हमारा धैर्य काम आता है। बस थोड़ा

सा धैर्य, फिर देखो सुबह की आशाभरी किरणों किस तरह से हमारे स्वागत को आतुर

हैं? अंत में यह याद रखना होगा कि 100 चोट पर लोहे को टूटना है, तो हमें 99
चोट के बाद धर्य नहीं खोना है, बस एक चोट और फिर लोहा टूट जाएगा, हमें हौसला
दे जाएगा। 99 तक पहुंचना आसान है, पर 99 से 100 की दूरी को पार करना मुश्किल
है।

dr_mahesh_parimal

डा. महेश परिमल

संक्षिप्त परिचय : छत्तीसगढ़ की सौंधी माटी में जन्मे महेश परमार ‘परिमल’ मूलत: एक लेखक हैं। बचपन से ही पढ़ने के शौक ने युवावस्था में लेखक बना दिया। आजीविका के रूप में पत्रकारिता को अपनाने के बाद लेखनकार्य जीवंत हो उठा। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसके सपने कभी उसकी पलकों में कैद नहीं हुए, बल्कि पलकों पर तैरते रहे और तैरते-तैरते किनारों को अपनी एक पहचान दे ही दी। आज लेखन की दुनिया का इनका भी एक जाना-पहचाना नाम है।

भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. का गौरव प्राप्त। अब तक सम-सामयिक विषयों पर एक हजार से अधिक आलेखों का प्रकाशन। आकाशवाणी के लिए फीचर-लेखन, दूरदर्शन के कई समीक्षात्मक कार्यक्रमों की सहभागिता। पाठच्यपुस्तक लेखन में भाषा विशेषज्ञ के रूप में शामिल। विश्वविद्याल स्तर पर अंशकालीन अध्यापन। अब तक तीन  किताबों का प्रकाशन। पहली ‘लिखो पाती प्यार भरी’ को मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा दुष्यंत कुमार स्मृति पुरस्कार, दूसरी किताब ‘अनदेखा सच’ और तीसरी अरपा की गोद  में   को पाठकों ने विशेष रूप से सराहा।

सम्पर्क:- Dr. Mahesh Parimal

403,Bhawani Parisar

Indrapuri BHEL

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We are grateful to Dr. Mahesh Parimal for sharing this inspirational Hindi article on Key of Life with HSC readers.

 

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