आज हम आपके लिए कुछ सवाल लेकर आये हैं जिनके उत्तर आपको देने हैं.
(1.) आज भी देश में लाखों बच्चे अशिक्षित हैं, जो देश के भविष्य हैं लेकिन आये दिन ट्रेन पर भीख मांगते नजर आते हैं! ऐसा क्यों?
(2.) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः, जहाँ नारियों की पूजा की जाती है वहाँ देवता निवास करते हैं. पर देश में ऐसे दुष्कर्म की घटना आये दिन सुनने में क्यों आती है, देश में महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है और युवा पीढ़ी कुछ नही कर पा रही है! ऐसा क्यों?
(3.) भगवान हम सबके अंदर है, और सही-गलत का फर्क हमे पता है लेकिन दिन प्रतिदिन ढोंगी पाखंडियों के जाल में फसना, उनका समर्थन करना, उन्हें बढ़ावा देना! ऐसा क्यों?
(4.) असफलता के आगे ही जीत है फिर असफल होने पर आत्महत्या..! ऐसा क्यों?
(5.) शराब, सिगरेट, तम्बाकू, ड्रग्स..etc. जानलेवा हैं, जानते हुए भी उपयोग करना! ऐसा क्यों?
(6.) अपने घर में सफाई लेकिन बाहर गंदगी! ऐसा क्यों?
(7.) देश को आजाद हुए 68 वर्ष हो चुके हैं लेकिन जात-पात, ऊंच-नीच, भेदभाव अभी तक…! ऐसा क्यों?
(8.) कोई भी इंसान मरने के बाद दौलत नही ले जा सकता, फिर दौलत के लिए ही जीना..! ऐसा क्यों?
(9.) शोर्ट-कट का परिणाम बहुत महंगा होता है यह जानते हुए भी सफल होने के लिए इसका इस्तेमाल करना..! ऐसा क्यों?
(10.) दूसरे के लिए गढ्ढे खोदने से उसमे खुद गिरना है यह जानते हुए भी गढ्ढा खोदना..! ऐसा क्यों?
(11.) सफलता के लिए अपनी सेहत के साथ लापरवाही बरतना सबसे बड़ी गलती है, यह जानते हुए भी ये गलती बार-बार दोहराना…! ऐसा क्यों?
(12.) प्रेरणादायक बातों को दिमाग में प्रवेश देकर सफलता की गाथा लिखी जा सकती है बस कदम बढ़ाने की देरी होती है, पर सब कुछ जानते हुए भी खाली बैठना..! ऐसा क्यों?
(13.) मेरी नजर में गलतियों को बार-बार दोहराना असफलता की कुंजी है, पर यही गलती हमेशा करना..! ऐसा क्यों?
(14.) सफल होने के लिए आखिरी दम तक, आखिरी सांस तक प्रयास करना क्योंकि पता है आगे जीत है, पर छोटी सी हार से मन में निराशा के बीज बोना..! ऐसा क्यों?
Friends, मैंने क्लास 5th में मैथिलीशरण गुप्त जी की एक कविता पढ़ी थी जिसकी कुछ पंक्तियाँ मैं पर आपके साथ शेयर करना चाहूँगा.
“नर हो न निराश करो मन को”.
नर हो न निराश करो मन को,
कुछ काम करो, कुछ काम करो,
जग में रहकर कुछ नाम करो,
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो!
समझो जिसमे यह व्यर्थ न हो.
कुछ तो उपयुक्त करो तन को,
नर हो न निराश करो मन को.
संभलो की सुयोग न जाये चला,
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला,
समझो जग को न निरा सपना.
पथ आप प्रशस्त करो अपना.
अखिलेश्वर है अवलम्बन को.
नर हो न निराश करो मन को.
दोस्तों आप इन बातों पर जरूर सोचें और अपना अमूल्य विचार कमेन्ट के द्वारा हम तक जरूर पहुंचायें. आप अपने जवाब और इस पर अपनी सोच हमे hamarisafalta@gmail.com पर मेल करके भी भेज सकते हैं. उम्मीद करते हैं आने वाला साल आपके लिए ढेरों खुशियाँ लाये और आप सबके सपने साकार हों…