एक धनी व्यक्ति सुकरात से मिलने के लिए पहुँचा. उनके सामने खड़े होकर वह अपने तारीफों के डींगे हांकने लगा. जब उसकी डींगें काफी बढ़ गई तो सुकरात ने अपने शिष्य को बुलाया और एक नक्शा लाने का आदेश दिया. नक्शा आते ही सुकरात ने धनी व्यक्ति से पूछा- “मित्र! ये बताओ इस नक़्शे में तुम्हारा घर कहाँ है?” उस
छोटे से नक़्शे में उसे घर कहाँ मिलने वाला था पर बहुत प्रयास करने के बाद चने के दाने के बराबर उसका देश उसे उस नक़्शे में दिखाई पड़ा.
सुकरात वह दिखाते हुए उससे बोले- “मित्र! परमात्मा ने अनंत विस्तार के साथ ब्रम्हांड की रचना की है. और उसी ब्रम्हांड में अनेकों ग्रह हैं, उन्हीं में से पृथ्वी भी एक है. इसी पृथ्वी पर अनेकों देश हैं और उनमे से एक तुम्हारा देश भी है. तुम्हारे देश में भी अनेकों राज्य हैं और उनमे से एक राज्य तुम्हारा है. तुम्हारे राज्य में भी अनेक नगर हैं उनमे से एक नगर तुम्हारा है. तुम्हारे नगर में भी अनेक धनपति होंगे और उनमे से एक तुम हो. जब परमात्मा के इतने बड़े साम्राज्य में मनुष्य का स्थान छोटा-सा है तो उसके लिए इतना व्यर्थ अहंकार करने से क्या लाभ!” थोड़ा रूककर सुकरात आगे बोले- “सांसारिक उपलब्धियों पर गर्व करने से बेहतर है कि तुम उस सौभाग्य को विकसित करने का प्रयास करो, जिससे तुम्हारा जीवन सार्थक बन सके..”
सुकरात की ये बातें सुनते ही धनी आदमी का घमंड चूर-चूर हो गया. और उसने तुरंत उनके चरण पकड़ लिए.
मित्रों, हमारे कार्य के प्रति घमंड होना स्वाभाविक हो जाता है पर अहम् की भावना हमे एक दिन ले डूबती है, किसी भी कार्य को पूरे निष्ठा से करें पर बार-बार यह न जताएं कि आप कितना श्रेष्ठ हैं और न ही अपने बड़े-बड़े डींगें हांकने में खुद को आगे लाएं..
Thanks!