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शक्कर की बोरी

 

एक गरीब आदमी हर रोज बाजार में शक्कर बेचा करता था, वह थोक में 800 रूपये के भाव से एक बोरी शक्कर खरीदता था और इस प्रकार शक्कर थोक के भाव में आठ रूपये पड़ती थी. बहुत ही अच्छी बात यह थी कि वह फूटपाथ पर ही आठ रूपये किलो में शक्कर बेच देता था.. सारा शहर उसी से शक्कर खरीदने की कोशिश करता था क्योंकि थोक के भाव में ही उन्हें फूटकर शक्कर और कहीं नहीं मिलती थी. दिन भर में वह शक्कर के दस बोरे बेच लेता था क्योंकि ग्राहक उसके दूकान को घेरे खड़े रहते थे.. लोगों ने जब उससे पुछा कि जब वह आठ रूपये किलो में खरीदता है और उसे आठ रूपये किलो पर ही बेच देता है तो उसके हाथ और क्या बचता है?

उसने बड़ा ही सटीक जवाब दिया, “बोरा…”

इस व्यापारी के लक्ष्य बहुत ही स्पष्ट थे, वह बोरे को प्राप्त करने के लिए बोरा भर शक्कर बेचा करता था और जब वह रात को घर लौटता था तो उसके पास दस बोरे होते थे जिन्हें अगले ही दिन वह बाजार में दस रूपये प्रति बोरी के हिसाब से बेच देता था और इसी तरह से वह सौ रूपये कमा लेता था…

इस छोटी सी कहानी से हमे निम्न शिक्षाएं मिलती हैं:-

  1. अपना लक्ष्य हमेशा स्पष्ट रखें जैसा कि उस व्यापारी ने रखा था कि उसे एक दिन में दस बोरियां शक्कर की बेचनी ही है और उन बोरियों से उसे सौ रूपये कमाने हैं.
  2. कोई भी कार्य हाथ में लेने के बाद दृढ निश्चय कर लें कि आपको उस कार्य में सफलता हासिल करनी ही है, हमेशा लाभ के बारे में ही सोंचें. आप जैसा सोचेंगे परिणाम आपको वैसा ही मिलगा.
  3. अपनी दिशा तय कर लें क्योंकि बिना सही दिशा के किसी भी कार्य-क्षेत्र में सफलता पाने की कोई गुंजाइश नहीं होती.

धन्यवाद!

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