सफल बोलचाल के छः शक्तिशाली नियम
Success और Failure से जुड़े शब्दों की दुनिया के शक्तिशाली नियम आज हम आपके साथ इस पोस्ट में शेयर करने जा रहे हैं जिसे प्रख्यात लेखक डॉ. उज्जवल पाटनी जी ने अपनी किताब “जीत या हार रहो तैयार” में लिखी है…
ध्यान रहे, यह पोस्ट थोड़ी लम्बी है लगभग 1500 शब्दों की इसलिए आप चाहें तो इस पेज को बुकमार्क करके रख सकते हैं या इस साईट का हमारी सफलता का एंड्राइड एप डाउनलोड करके इस पोस्ट को ऑफलाइन भी पढ़ सकते हैं … एंड्राइड एप डाउनलोड लिंक
इस दुनिया में किसी भी व्यक्ति को सफलता के शिखर पर जाने के लिए इस क्षेत्र में महारत हासिल करनी पड़ेगी.. आज टीमवर्क का ज़माना है, इसमें यह बहुत ही जरूरी है कि आप अपनी बातें रखें और इसके लिए यह भी आवश्यक है कि दुसरे आपको स्वीकार करें … ये नियम आपको हमेशा बताएँगे कि आखिर टीमवर्क में शब्दों की ताकत क्या कर सकती है!
नए कॉर्पोरेट कल्चर में सीनियर-जूनियर, बड़ा-छोटा आदि श्रेणियां कुछ भी मायने नहीं रखतीं.. आज सबको यह स्वतंत्रता है कि वह खुलकर अपने विचार शेयर कर सकता है.. आज सारे लोग बिना किसी औपचारिकता के अपनी बात रखते हैं तो अक्सर विचारों में टकराव होना स्वाभाविक हो जाता है.. विचारों की विभिन्नता और बहस के बीच व्यक्ति को हमेशा अपनी बातें परखने की कला आनी चाहिए जिससे तर्क भी सिद्ध हो जाए और किसी को व्यक्तिगत आघात भी न हो… आज हम आपके साथ इस पोस्ट में उज्जवल पाटनी द्वारा लिखी यह आर्टिकल शेयर करेंगे जिसमें सफल बोलचाल के ये 6 शक्तिशाली नियम आपको दूसरों के सामने बिना विवाद खड़ा किये अपनी बात रखने का रास्ता बतायेंगी…
- बोलने के पहले हमेशा सोचिये
सुनने में यह बात कितनी सहज लगती है, ऐसा लगता है कि आखिर इस उपदेश में नया क्या है.. मित्रों, दुनिया में अधिकांश विवाद और स्कैंडल इसलिए होते हैं क्योंकि इंसान भावावेश में या लापरवाही में ऎसी बातें कह जाता है जो उसे नहीं कहनी चाहिए थी.. गुस्से में, विवाद के दौरान या कभी मजाक में अक्सर मुंह से पहले शब्द निकलते हैं और उसके दिमाग बाद में सोचता है…शब्दों का अर्थ कोहराम मचा देता है इसलिए हमेशा पहले सोचिये फिर बोलिए.. यदि मन में जरा-सा भी संशय हो तो मौन रह जाइये लेकिन गलत बोलकर आफत मोल लेना कभी भी समझदारी वाली बात नहीं होगी… वैसे आजकल इस संसार में कम बोलने वाले को गंभीर और गरिमामय माना जाता है और ज्यादा बोलने वाले को बातूनी और मुंहफट… कम बोलने वाला मुर्ख आदमी भी विद्वान की तरह प्रतीत होता है.. इसलिए जब भी आपके मन में कडवाहट भरी हो, जब आप आवेश में हों, उस वक्त इस नियम का पालन कीजियेगा नहीं तो मेहनत से संजोये नाजुक रिश्ते टूटने में वक्त नहीं लगेंगे…
एक बुद्धिमान आदमी भाषण करने से पहले चिन्तन करता है और एक मुर्ख इंसान भाषण कर देता है और फिर चिंतन करता है कि उसने क्या कुछ कह दिया….
- गलती हो जाए तो तुरंत स्वीकार करना सीखें
यदि कभी किसी कार्य के दौरान कोई गलत तथ्य आपके मुंह से निकल जाए, कोई गलत शब्द आप लापरवाही में कह दें, कोई गलत संबोंधन आप अज्ञानता में दे दें तो उसे तुरंत स्वीकार कर लें… अक्सर इन्सान जब कोई गलती करता है तो उसके बाद वह फिर तीन गलतियाँ और करता है:->
- अपनी गलती छुपाता है…
- अपनी गलतियों पर बहस करता है…
- अपनी गलती कभी स्वीकार नहीं करता…
ऐसी परिस्थिति में वह प्रसंग या विवाद इलास्टिक की तरह खिंच जाता है जो काफी अपमान और नुकसान देता है… तुरंत माफ़ी मांग लेना या अपनी गलती स्वीकार कर लेना की कायरता नहीं है बल्कि बहुत बड़ी बुद्धिमत्ता की निशानी है.. आपकी स्वीकोरोक्ति आपके अपमान के सारे दरवाजे बंद कर देती है…
भूल स्वीकार करने का कार्य सिर्फ और सिर्फ साहसी और चरित्रवान लग ही कर सकते हैं.. गलती हो जाने पर विवाद को वहीँ रफा-दफा कीजिये, बात आगे बढ़ी तो दूर तक जाएगी और आगे संभाले नहीं संभलेगी…
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- आप क्या कहते हैं…. से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है आप कैसे कहते हैं…
कुछ लोगों के बात करने की टेक्निक इतनी तीखी और अमान्जंक होती है कि वे सामान्य बात भी यदि कह रहे हों तो लगता है कि वे डांट रहे हैं… ऐसे लोगों को कभी पता भी नहीं चलता कि इन्होने कब किसे चोट पहुंचा दी…
यदि आपका सबसे चहेता या प्रिय व्यक्ति आपसे कहे- “मैं अच्छी तरह जानता हूँ, आप इस ऊँचाई तक कैसे पहुंचे हैं!” आप इस बात से आहत नहीं होंगे क्योंकि आपको लगेगा कि यह लाइन एक प्रशंसात्मक लाइन है..आपको लगेगा कि सामने वाला आपकी मुश्किलों, संघर्षों और बाधाओं के बारे में आपसे बात कर रहा है जिनको हराकर आपने सफलता हासिल की है.. परन्तु लाइन कोई चुभने वाले अंदाज में कहे तो आपको लगेगा कि जरूर सामने वाला व्यक्ति यह कहना चाह रहा है कि यहाँ तक तुम जुगाड़ से, रिश्वत से, या अनैतिक तरीकों से पहुंचे हो…
शब्द आखिर वही है लेकिन पहले व्यक्ति के लिए आपके मन में आदर भाव बढ़ जायेगा और दुसरे व्यक्ति के लिए मन में दुश्मनी का भाव आ जायेगा …
इसलिए हमेशा यह जरूरी है कि हम मंतव्य के अनुसार बोलने का तरीका भी सीखें… शब्दों में भावनाएं भी संप्रेषित होनी चाहिए… नीचे लिखी लाइन को आप विभिन्न शैलियों में सामान शब्दों के साथ कैसे-कैसे व्यक्त कर सकते हैं देखिये–
क्या मुझमें और तुममें प्यार का रिश्ता हो सकता है
- सवालिया ..
- प्यार का रस्ताव..
- गुस्सा…
- तिरस्कार…
- एक सोचनीय मुद्दा…
इस एक लाइन के पांच से भी ज्यादा अर्थ निकल सकते हैं.. चंद शब्दों की यही लाइन दो दिलों को मिला भी सकती है और जुदा भी कर सकती है… इसलिए अपने लहजे पर हमेशा ध्यान दीजिये और सफलता प्राप्त करने के लिए बोलने की शैली को संतुलित बनाइये…
- बहस का अंत हमेशा गरिमा से कीजिये..
आप एक प्रोफेशनल हों या किसी भी संस्था में कार्यरत हों, आपका परिवार छोटा हो या संयुक्त परिवार हो, आप किसी क्लब का हिस्सा हों या किसी सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा हों, यह तय मानकर चलिए कि जहाँ चंद बुद्धिमान लोग होंगे वहां विवाद होगा… किसी भी प्रकार की चर्चा या विवाद का अंत ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप अपने संबंधों को खो दें … इसलिए हमेशा इन बातों का ध्यान रखें:-
- आपकी बहस व्यक्ति के विचार से हो रही है न कि व्यक्ति से…
- हर बहस जीतना जरूरी नहीं है, कई बार हारकर भी जीत हासिल होती है…
- कोई बहस इतनी लम्बी नहीं हो सकती कि आप चाहकर भी खत्म न कर सकें..
- सार्वजनिक जगहों पर यदि बहुत आवश्यक न हो तो दूसरों को बहस में शर्मिंदा करने से बचें…हराएँ भी लेकिन सम्मानपूर्वक निकल जाने दें..
- बहस मुद्दागत है, व्यक्तिगत नहीं… बहस के अगले दिन पुनः उस व्यक्ति को “हैलो” कहना आपके शक्तिशाली होने की पहचान है…
- योजनाबद्ध मौन आपकी जीत की संभावनाओं को कई गुना बढ़ा सकता है… हमेशा…
- किसी भी टाइप की रिपोर्ट प्रस्तुति, प्रश्नोत्तर सत्र या बहस में अपनी बात सशक्त ढंग से सत्य तथ्यों के साथ रखिये… दूसरों पर ध्यान मत दीजिये…
- किसी भी बहस में शरीर की अक्षमताओं, रंग, जाति, क्षेत्र, धर्म, या लिंग जैसे विषयों पर कट्टर आपेक्ष न लगायें अन्यथा बहस का एक बुरा अंत हो जायेगा… साथ ही आपकी छवि का भी…
बहस की शुरूआत तो मुर्ख से मुर्ख व्यक्ति भी कर सकता है लेकिन सकारात्मक अंत करने के लिए बेहद बुद्धिमत्ता की जरूरत होती है…
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- गड़े मुर्दे उखाड़ना बंद कीजिये
गरिमापूर्ण बहस करना सबके बस की बात नहीं होती… लोग बहस में जीतने के लिए या अपनी बात सिद्ध करने के लिए पुराने मुद्दों को बीच में ले आते हैं.. पुरानी बातें बीच में लाने से सामने वाला बन्दा भी उत्तेजित हो जाता है और आपकी सही बातों को मानने से इंकार कर देता है.. विवाद बढ़ जाता है और पुराने घाव हरे हो जाते हैं… पुरानी बातों को बीच में लाने से आपका प्रभाव कम हो सकता है और साथ ही बात मूल मुद्दे से भटक सकती है… और आगे ऎसी बातें भी सामने आ सकती हैं जिनसे आपकी भी पोल खुल जाए…. हर बहस वर्तमान में ही होनी चाहिए और वर्तमान में ही खत्म होनी चाहिए … न तो उसमे पिछला दिन आना चाहिए और न ही वो अगले दिन तक जानी चाहिए….
- दूसरों को असहमत होने का पूरा अधिकार है…
यदि आपके प्रियजन, आपके सहकर्मी या अन्य साथी लोग आपकी बातों से सहमत नहीं हैं तो आपको उत्तेजित होने का कोई हक नहीं बनता है.. यदि दुसरे आपका विरोध कर रहे हैं तो तर्कपूर्ण ढंग से उन्हें समझाने का प्रयास किया जा सकता है… यदि वे फिर भी आपसे सहमत नहीं हो रहे हैं तो उन्हें असहमत होने का पूरा अधिकार है…
हमें इस बात को भी स्वीकारना होगा कि हर बार हमारी बात तर्कपूर्ण और सत्य नहीं हो सकती.. इसलिए यह जरूरी नहीं कि हर बार सब हमसे सहमत हों… इंसान की तरक्की का आधार सहमती नहीं बल्कि असहमति है… यदि असहमति नहीं होता तो दुनिया में आज नये नये आविष्कार संभव नहीं हो पाते. एक प्रकार से देखा जाए तो कमजोर व्यक्ति असहमत नहीं हो सकता क्योंकि उसके लिए स्वतंत्र विचारधारा चाहिए.. बात करने का साहस चाहिए और दुसरे बात अस्वीकार कर सकते हैं यह सहन करने की हिम्मत चाहिए… इसलिए हर असहमत होने वाले व्यक्ति को कभी भी अपना विरोधी या दुश्मन मत समझिये क्योंकि हो सकता है उसी विरोधी में सफलता की चाबी छुपी हो……
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