एक बार एक गाँव में संत कालिदास जी का आगमन हुआ। वो अपने प्रवचनों के माध्यम से लोगों के अंदर नयी चेतना विकसित करते थे । संध्या के समय जब उनका प्रवचन खत्म होने को था तब रामू नाम का एक किसान उनके पास पहुंचा और उनसे आग्रह करते हुए बोला- महात्मन! मैं एक गरीब मजदूर हूँ, किसी तरह खेतों में काम करके अपने परिवार का पेट भरता हूँ । मुझे खेत में बीज बोना पड़ता है और हल चलाकर मुझे फसल पैदा करनी रहती है और जब फसल पक जाता है उसके बाद ही मैं अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर पाता हूँ ।
आप संत और ज्ञानी पुरूष हैं, और मैं आपसे मार्गदर्शन चाहूँगा कि आप मुझे कोई ऐसा रहस्य बताएं जिससे मैं एक बार जब खेत में काम शुरू कर दूँ तो वहाँ से मुझे हमेशा फल प्राप्त होते रहें, जो कभी भी खत्म न हो!
रामू की बात सुनते ही संत कालिदास मुस्कुराये और बोले- रामू! तुम एक नेक इंसान हो और तुम्हें कभी न खत्म होने वाले फल की प्राप्ति भी होगी लेकिन इसके लिए सबसे पहले तुम्हें अपने मन-मस्तिष्क में बीज बोना होगा ।
ये सुनते ही रामू स्तब्ध रह गया और बोला- महाराज! ये आप क्या कह रहे हैं? मैं अपने मन में किस प्रकार से बीज बो सकता हूँ और उस बीज से मुझे कैसे फल प्राप्त हो सकेंगे?
कालिदास उत्तर देते हुए बोले- रामू! यह बिलकुल ही संभव है । ये बीज कोई साधारण बीज जैसे नहीं होंगे, ये बहुत अद्भुत होंगे जो तुम्हारे जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में अपना योगदान देंगे ।
रामू जिज्ञासा लिए बोला- महात्मन! कृपया मुझे बताएं कि मैं अपने मन-मस्तिष्क में यह बीज कैसे बो सकता हूँ ?
संत ने जवाब देते हुआ कहा- प्रिय! तुम अपने मन में आत्मविश्वास का बीज बोओ, विवेक, संयम और सूझ-बूझ का हल चलाओ, अपने विद्या या ज्ञान के पानी से उसे सींचो और अंत में उसमे शिष्टाचार और नम्रता का खाद डालो इस तुम्हें कभी न खत्म होने वाले फल की प्राप्ति होगी, जो कि कभी भी खत्म नहीं होगी ।
संत कालिदास की बातें, रामू समझ चूका था और जान चूका था कि जीवन में कभी न खत्म होने फल की प्राप्ति सिर्फ और सिर्फ सद्विचारों के द्वारा ही संभव है ।
धन्यवाद!
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