एक आदमी के मरने के बाद सेंट पीटर (St. Peter) ने उनसे पूछा कि तुम स्वर्ग में जाना चाहोगे या नर्क में. उस आदमी ने पूछा कि फ़ैसला करने से पहले क्या मैं दोनों जगह देख सकता हूँ.
सेंट पीटर पहले उसे नर्क में ले गये, वहां उसने एक बहुत बड़ा हाल देखा जिसमें एक बड़ी मेज पर तरह-तरह के खाने की चीजें थीं. उसने पीले और उदास चेहरे वाले लोगों की कतारें भी देखीं. वे बहुत भूखे जान पड़ रहे थे, और वहां कोई हँसी-ख़ुशी न थी.
उसने एक और बात भी गौर किया कि उनके हाथों में चार फूट लम्बे काँटे और छुरियां बंधी थीं. जिनसे वे मेज के नीचे पड़े खाने को खाने की कोशिश कर रहे थे. मगर वे खा नहीं पा रहे थे.
फिर वह आदमी स्वर्ग देखने गया. वहां भी एक बड़े हाल में एक बड़ी मेज पर ढेर सारा खाना लगा था. उसने मेज के दोनों तरफ लोगों की लम्बी कतारें देखीं, जिनके हाथों में चार फूट लम्बी छुरी और काँटे बंधे हुए थे, ये लोग खाना लेकर मेज की दूसरी तरफ से एक-दुसरे को खाना खिला रहे थे, जिसका नतीजा था – खुशहाली, समृद्धि, आनंद और संतुष्टि.
वे लोग सिर्फ अपने बारे में ही नहीं सोच रहे थे, बल्कि सबकी जीत के बारे में सोच रहे थे…
यही बात हमारे जीवन पर भी लागु होती है, जब हम अपने ग्राहकों, अपने परिवार, अपने मालिक, अपने कर्मचारी और अपने चाहने वालों की सेवा करते हैं तो हमें जीत खुद-ब-खुद मिल जाती है.
यह कहानी “You Can Win” के हिंदी अनुवाद “जीत आपकी” से प्रेरित है जिसके लेखक शिव खेड़ा हैं…