बच्चे बिगड़ैल क्यों बनते हैं? What Makes a Child Delinquent? | Hindi

प्रिय नागरिकों, तुम अपने बच्चों की देखभाल में इतना कम ध्यान क्यों देते हो, और दौलत पाने के लिए पत्थरों को तराशने में इतना ज्यादा समय क्यों देते हो, जबकि एक दिन यह सब बच्चों के लिए ही छोड़ जाना है…

                        –सुकरात.

यह पोस्ट “शिव खेड़ा जी की किताब You can win के हिंदी अनुवाद जीत आपकी” से प्रेरित है, जिसमें उन्होंने बताया है कि आखिर एक बच्चा बिगड़ैल क्यों बनता है.

आइये जानते हैं कि बच्चे बिगड़ैल क्यों बनते हैं –

  • उसे बताइए कि हर चीज की एक कीमत होती है. लिहाज़ा वह एक दिन अपनी ईमानदारी बेच देगा…
  • उसे किसी भी बात पर दृढ न रहने की शिक्षा दीजिये. लिहाज़ा वह हर चीज पर फैसला करेगा…
  • उसे सिखाइए कि ज़िन्दगी में कामयाबी ही सब कुछ है; लिहाज़ा वह हर तिड़कम करके कामयाब होने की कोशिश करेगा…
  • उसे बचपन से ही वह सब कुछ दीजिये, जिसकी उसे चाहत है; लिहाज़ा वह इस सोच के साथ बड़ा होगा कि उसकी ज़िन्दगी की जरूरतें पूरी करना दुनिया की ज़िम्मेदारी है और उसके सामने हर चीज़ तश्तरी में परोस कर पेश कर दी जाएगी…
  • जब वह गंदे लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करे, तो उस पर हँसिए. इससे वह खुद को चतुर समझने लगेगा…
  • उसे नैतिकता सिखाने की बजाए, उसके 21 साल होने का इंतजार कीजिये, ताकि वह अपने बारे में ख़ुद फ़ैसला कर सके…
  • उसे सही दिशा का ज्ञान कराये बिना चुनाव करने की आज़ादी दीजिये. उसे यह कभी न सिखाइए कि हर चुनाव का एक नतीज़ा भी होता है…
  • उसे उसकी गलतियों के बारे में यह सोचकर कभी कुछ न बताइए कि इससे उसके मन में कुंठा (complex) पैदा हो जाएगी. लिहाज़ा कोई गलत काम करते हुए पकड़े जाने पर वह यह मानेगा कि समाज उसके खिलाफ़ है…
  • उसके आसपास बिखरी हुई हर चीज़, जैसे कि किताबें, जूते, कपड़े वगैरह खुद उठाइए. उसका हर काम खुद कीजिये. नतीजा यह होगा कि उसे अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ दूसरों के कन्धों पर डालने की आदत हो जाएगी…
  • वह जो भी चीजें देखना सुनना चाहे, उसे देखने और सुनने की आज़ादी दीजिये. उसके शरीर में जाने वाली खुशबु पर तो ध्यान दीजिये, पर उसके मस्तिष्क में कूड़ा जाने दीजिये…
  • दोस्तों के बीच लोकप्रिय होने के लिए उसे कुछ भी करने दीजिये…
  • उसके मौजूदगी में अकसर झगडिये. लिहाज़ा घर टूटने पर उसे कोई भी अचरज नहीं होगा…
  • वह जितना पैसा मांगे, उसे दीजिये. उसे पैसे की कीमत कभी न समझाइए. इस बात का पूरा ध्यान रखिये कि उसे वैसी दिक्कतों का सामना कभी न करना पड़े, जिनका सामना हमको करना पड़ा था…
  • खाने, पीने और ऐशोआराम की सारी शारीरिक जरूरतों को यह सोचकर फ़ौरन पूरा कीजिये कि चीज़ें न मिलने पर वह हताश होगा…
  • पड़ोसियों और अध्यापकों के सामने यह सोचकर हमेशा उसका पक्ष लीजिये कि हमारे बच्चे के लिए उनके मन में मैल है…
  • जब वह किसी असली मुसीबत में फँसे, तो यह कहकर हाथ झाड़ लीजिये, “मैंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की, पर उसके लिए कुछ न कर सका…”
  • उसे यह सोचकर किसी बात पर मत टोकिये कि अनुशासन से आज़ादी छिन जाती है…
  • उसे आज़ादी का पाठ पढ़ाने के लिए माँ-बाप की तरह सीधा नियन्त्रण रखने की बजाय उस पर दूर से नियन्त्रण रखिये…
  • उसे हर एक चीज़ करने की छुट दीजिये और उसकी गलतियों को नजरअंदाज करते चलिए…

 

 Parenting के लिए एक Short Moral Hindi Story

एक डकैती के मुलज़िम को सजा देते समय जज ने उससे पूछा कि क्या उसे कुछ कहना है? उस आदमी ने जवाब दिया, “जी हुजुर. मेहरबानी करके मेरे माँ-बाप को भी सज़ा दीजिये…”

जज ने पूछा, “क्यों?”

कैदी ने जवाब दिया, “जब मैं छोटा बच्चा था, तो मैंने स्कूल से पेन्सिल चुराई. मेरे माँ-बाप ने यह जानने के बावजूद मुझे कुछ नहीं कहा. उसके बाद मैंने एक पेन चुराई. उन्होंने उस वाकये को भी जान बुझकर नज़रअंदाज़ कर दिया. उसके बाद मैं स्कूल और पड़ोसियों के घरों से एक के बाद एक चीजें चुराता रहा और यही चोरी एक दिन मेरी आदत बन गयी…

मेरे माँ-बाप को ये सारी बातें मालूम थीं, पर उन्होंने मुझे एक शब्द भी नहीं कहा, इसलिए मेरे साथ उन्हें भी जेल जाना चाहिए…”

Friends, वह कैदी सही कह रहा था.. हाँलाकि इन बातों से वह अपनी जिम्मेदारियों से बरी नहीं होता, पर सवाल यह पैदा होता है कि क्या माँ-बाप ने सही काम किया ? जाहिर है कि ‘नहीं..’

दोस्तों Parenting एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है, और बच्चों के बिगड़ने में माँ-बाप का ही अहम रोल होता है.. और यह भी शत प्रतिशत सच है कि बच्चों के बनने में भी माँ-बाप का ही अहम रोल रहता है.. अब यह Parents की ज़िम्मेदारी है कि वह इसके लिए कौन-सा रोल निभाना चाहेंगे…

  बच्चे वही सीखते हैं जो जीते हैं

अगर बच्चा आलोचना के माहौल में रहता है तो वह निंदा करना सीखते है.

अगर बच्चा प्रशंसा के माहौल में रहता है तो तारीफ करना सीखता है.

अगर बच्चा लड़ने के माहौल में रहता है तो झगड़ना सीखता है.

अगर बच्चा सहनशीलता के माहौल में रहता है तो धैर्य सीखता है.

अगर बच्चा बेहुदे और खिल्ली उड़ाने वाले माहौल में रहता है तो वह संकोच करना सीखता है.

अगर बच्चा प्रोत्साहन वाले माहौल में रहता है तो आत्मविश्वास सीखता है.

अगर बच्चा शर्मिंदगी के माहौल में रहता है तो वह ख़ुद को दोषी मानना सीखता है.

अगर बच्चा समर्थन वाले माहौल में रहता है तो वह खुद को पसंद करना सीखता है.

अगर बच्चा न्यायसंगत माहौल में रहता है तो इन्साफ करना सीखता है.

अगर बच्चा सुरक्षा के माहौल में रहता है तो वह भरोसा करना सीखता है.

अगर बच्चा सहमति और दोस्ती के माहौल में रहता है तो वह दुनिया में प्यार ढूंढ लेना सीखता है…

 

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