ऐ मेरे मौला तू मालिक है सबका ।
सारा जहाँ में है, तेरा ही तो दपका । ।
मेरे गरीब नवाज तुम्हीं ही सहारा ।
गर तुम न होते तो मर जाते कबका । ।
तेरे बगैर इजाजत क्या हिलेगा ये पत्ता ।
ये गुलशन गुलिस्तां है मेरे ही रब का । ।
इंसानियत का कहीं नहीं है नामो निशां ।
बड़ा ख़राब जमाना आ गया है अबका । ।
काबिले तारीफ़ है दुनिया बनाने वाले ।
इंसान को बनाया है बड़ा ही ग़जब का । ।
अपने आपको खुद खुदा समझ बैठा ।
इंसान नाम लेना भूल गया है रब का । ।
ऐ मेरे मालिक काली कमली वाले ।
तेरा ही शान शौकत है सारे मजहब का । ।
तेरे ही उम्मीद पर टिकी है वरना ।
ये दुनिया दलदल में डूब जाता कब का । ।
शमा से क्या पूछे, ये ‘चितवा’ बेचारा ।
रंग रूप अनेक पर, एक ही खुदा है सबका । ।
त्रिभुवन सिंह ‘चितवा’
रायगढ़ (छ.ग.)
जन्म तिथि : 25-12-1950
मो. नं. +91-9589365566
त्रिभुवन सिंह चितवा, गढ़भीतर गली राजा पारा के निवासी हैं और इनके द्वारा दस वर्षों से कविताएँ लिखी जा रही हैं और कविताओं में छत्तीसगढ़ी, हिंदी और गजल का समावेश है जिसे विभिन्न पत्रिकाओं के माध्यम से प्रकाशित किया जाता है जिसे हजारों लोगों द्वारा पढ़ा जाता है ।
हम त्रिभुवन सिंह जी के आभारी हैं जिन्होंने इतनी सुन्दर गज़ल हमारे साथ साझा की ।