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आचार्य विनोबा भावे का नियम – Inspirational Story

आचार्य विनोबा भावे का नियम- Inspirational Story

आचार्य विनोबा भावे जी का एक नियम यह था कि वे अपने पास आने वाले पत्रों को बहुत संभालकर रखा करते थे और उन सभी पत्रों का यथावत उत्तर भी दिया करते थे। एक बार उनके पास गाँधीजी का एक पत्र आया । पत्र पढ़ते ही विनोबा जी ने उसे फाड़ दिया । उनके पास में ही कमलनयन बजाज जी बैठे थे । विनोबा जी को अपने आदत के विपरीत आचरण करते हुए उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ । वे अपनी उत्सुकता दबा नहीं सके और उन्होंने फटे हुए पत्र को जोड़कर पढ़ा, तो उसे विनोबा जी की प्रशंसा से भरा हुआ पाया । आश्चर्य सहित बजाज साहब ने पूछा, ‘आपने इतने महत्वपूर्ण पत्र को यूँही फाड़कर क्यों फेंक दिया?’ विनोबा जी ने उत्तर दिया, ‘यह पत्र मेरे लिए बेकार है।’ बापू ने अपनी विशाल दृष्टि और प्रेमवश मेरी प्रशंसा तो कर दी, लेकिन वो मुझे मेरे दोष नहीं बता पाए, मेरे दोषों की उन्हें क्या खबर है? यह प्रशंसा मेरे काम की नहीं है । मुझे कोई मेरे दोष बताइए, तो मैं उन्हें दूर करने की कोशिश करूँ । इसीलिए मैंने यह पत्र फाड़ दिया ।

तो यह था, आचार्य विनोबा भावे का चरित्र के प्रति साफ़ सुथरा नजरिया । वास्तव में चरित्र के धनी व्यक्ति अपनी प्रशंसा का तिरस्कार कर दूसरों की आलोचना सुनने को ज्यादा उत्सुक रहते हैं जो उनके निरंतर चरित्र के उत्थान में सहायक सिद्ध होती है ।

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