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वर्क फ्रॉम विलेज Work From Village in Hindi

work from village in hindi

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Work From Village in Hindi

अब तक तो वर्क फ्राम होम की बातें ही सुनाई दे रही थीं। लेकिन कुछ महीनों से वर्क फ्राम विलेज भी सुनाई देने लगा है। हुआ यूं कि एक दोस्त को जब उसके जन्म दिन पर फोन कर हाल-चाल पूछा-तो उसका कहना था कि आजकल गांव में रहकर खेती संभाल रहा हूं और आफिस का काम भी देख रहा हूं। मेरा पूछना स्वाभाविक था, यह कैसे संभव है? तब उसने बताया कि आपके पास अपना लेपटॉप है और गांव में नेट कनेक्टिविटी है, तो फिर समझ लो, आपने फतह कर ली। अभी जिस तरह के हालात हैं, उससे यही लगता है कि एक तरफ जिंदगी सिमट रही है, तो दूसरी तरफ फैल भी रही है। इसी सिमटने और फैलने के बीच ही जिंदगी कहीं मुस्करा भी रही है।
कुछ महीनों तक घर पर काम करते हुए लोग बोरियत महसूस करने लगे, तो वे गांवों की ओर चल पड़े हैं। इससे उन्हें एक तरफ अपनी पुश्तैनी खेती-बारी को देखने का अवसर मिला, तो दूसरी तरफ वे ग्रामीण जीवन को करीब से देखने भी लगे। यहां आकर उन्हें वास्तविक जीवन का आनंद मिलने लगा। अब तक शहरी जीवन के आदी हुए लोगों को अब जो जीवन देखने को मिला, वह काफी रोमांचित कर देने वाला लगा। अहा! यहां तो कितना खुला-खुला है सब-कुछ। दूर तक केवल हरियाली और सायं-सायं चलती हवाएं। जानवरों का झुंड, मजदूरों के बीच होने वाले संवाद, मानों जीवन में रस घोलने लगे। शाम को पशुओं को घर लौटने की आवाज, इसी समय को शायद गोधूलि बेला कहते हैं ना? दूर कहीं बांसुरी की मीठी तान, ऐसा लगता है मानों हम किसी दूसरी ही दुनिया में आ गए हैं। किताबों में गांवों के बारे में जो पढ़ते थे, वह सब कुछ अब साकार हो रहा है।
यह भी सच है कि अब गांव के भीतर भी छोटे-छोटे शहर उगने लगे हैं। गांव में राजनीति भी बहुत होने लगी है। शहरी सभ्यता से ओत-प्रोत युवा बुजुर्गो की बात नहीं मानते। सबके सामने उन्हें जलील करने में भी उन्हें शर्म नहीं आती। अपराध भी पैर पसारने लगे हैं। गांव कई गुटों में बंटा हुआ है। रसूखदार अपनी साख जमाए रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। बेबस-लाचार किसान की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सरकार द्वारा चलाई जाने वाली तमाम योजनाएं यहां दूसरे ही रूप में दिखाई देती हैं। सरकारी अधिकारी ऐसे काम करते हैं, जैसे वे सरकार के कारिंदे न होकर गांव वालों के साहूकार हों। सरकारी मदद को वे ऐसे देते हैं, जैसे वे व्यक्तिगत रूप से उन्हें मदद कर रहे हैं। दूसरी तरफ शहर से आई बहू गरीब बच्चों को शिक्षा दे रही है। कहीं अंगरेजी क्लासेस चला रही है, तो कहीं लजीज व्यंजन बनाने की शिक्षा दी जा रही है। यह भी गांव का एक रूप है। जीवन के इस रूप को अब तक नहीं देखा था, जो अब देखने को मिला।
आप पढ़ रहे हैं : Work From Village in Hindi by Dr. Mahesh Parimal 
इस बीच कुछ अच्छी खबरें भी मिली हैं। जैसे कोरोनावायरस महामारी के कारण अधिकांश भारतीय वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। लेकिन इससे उनके काम करने के घंटे में बढ़ोत्तरी हो गई है। वर्कप्लेस सॉफ्टवेयर डेवलपर अटलासियन (Atlassian) की ओर से 65 देशों में किए गए अध्ययन में यह सामने आया है कि पूरी दुनिया में लोग जल्दी लॉग-इन करते हैं और वर्किंग आवर्स के काफी देर बाद लॉग-ऑफ होते हैं। अध्ययन के अनुसार इस साल की शुरुआत के मुकाबले अप्रैल और मई में भारतीयों के औसत वर्किंग आवर्स में 32 मिनट की बढ़ोतरी हुई है। इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया और अमेरिकियों के वर्किंग आवर्स में भी 32 मिनट की बढ़ोत्तरी हुई है।
स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक, वर्क फ्रॉम होम के दौरान इजराइल के लोगों के वर्किंग आवर्स में सबसे ज्यादा 47 मिनट की बढ़ोत्तरी हुई है। जबकि दक्षिण अफ्रीका के लोगों के वर्किंग आवर्स में 38 मिनट की बढ़ोत्तरी हुई है। स्टडी रिपोर्ट में इस बात का संकेत भी मिला है कि वर्क फ्रॉम होम के दौरान अधिकांश लोग सुबह और शाम के समय ज्यादा काम करते हैं, जबकि दोपहर के समय काम की उत्पादकता घट जाती है। इससे इस बात का भी संकेत मिलता है कि वर्क फ्रॉम होम के दौरान कर्मचारी एक्स्ट्रा फ्लेक्सिब्लिटी का लाभ लेते हैं। लेकिन इससे पहले के मुकाबले फ्री टाइम में अतिक्रमण होता है। अध्ययन से पता चलता है कि महामारी के दौरान घर और ऑफिस की सीमाएं खत्म हो गई हैं।
जो भी हो, पर कोरोना ने हमें पूरी दुनिया को देखने का एक अलग ही नजरिया दे दिया। यह सिद्ध हो गया कि अब लोग अदृश्य रहकर भी देश के विकास में अपना योगदान दे सकते हैँ। अपना काम करने और करवाने के लिए किसी को सामने आने की आवश्यकता नहीं है। सब कुछ डिजिटल हो गया है। घर पर बैठकर इंसान पूरी दुनिया पर नजर रख सकता है। सोशल मीडिया में यदि कोई सक्रिय है, तो उसकी यह सक्रियता ही उसके काम आती है। इससे दूर रहने वाला इंसान आज हाशिए पर है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि लोगों में भले ही दूरियां बढ़ गई हैं, पर लोग दिल से एक-दूसरे के काफी करीब भी आ गए हैं। इसके लिए आखिर किसे धन्यवाद कहा जाए-कोरोना ही को ना?
डॉ. महेश परिमल 
403,Bhawani Parisar
Indrapuri BHEL
BHOPAL 462022
Mob.09977276257

http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/
http://aajkasach.blogspot.com/

We are grateful to Dr. Mahesh Parimal Ji for sharing this Work From Village in Hindi – Heart Touching Article with us. Thank you so much sir…

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