दोस्तोँ 19 जनवरी को ज्योँ ही News paper पढ़ा, तो उसमेँ मैनेँ अपनेँ गुरू डॉ. उज्जवल पाटनी जी का एक लेख वहाँ पाया। मैँने जब उनके लेख को पढ़ा तो मेरे मन मेँ अजीब सी हलचल हूई और उतनेँ Time मैँ बहुत ही ज्यादा Emotional हो गया था।
Friends आज डॉ. पाटनी जी के इस छोटे से लेख को आप जरूर पढ़ेँ। क्योँकि इस लेख को पढ़ते ही आपकी सोँच मेँ बहूत Changes आयेँगी। So आपका Time waste न करते हुये, पढ़ते हैँ मेरे गुरूजी डा पाटनी जी के इस बेहतरीन लेख को।
प्रिय मनुष्य,
मैँने तुम्हेँ धरती पर भेजा है तो यह मेरी Responsibility है कि तुम्हेँ हर पल सुखी रखुँ। मेरी जिम्मेदारी है कि तुम्हारा परिवार स्वस्थ हो, हंसी-खुशी साथ रहेँ और आपस मेँ बहुत सारा प्रेम हो।
मैँ दो रूपोँ मेँ तुम्हारे साथ हमेशा रहता हूँ। मेरा पहला रूप है, तुम्हारे बिल्कुल पास रहनेँ वाले तुम्हारे बुढ़े माता-पिता। मेरा दुसरा रूप है, दुनिया के लाखोँ करोड़ोँ नन्हेँ बच्चे जिनमेँ तुम्हारी संतानेँ भी शामिल हैँ।
तुम तो जानते हो कि मेरे आशिर्वाद मेँ बहुत ताकत है। मैँ तुम्हारे माता-पिता के रूप मेँ तुम्हेँ आशिर्वाद देनेँ का मौका हर पल ताकता रहता हूँ, लेकिन तुम्हारे पास मेरे लिये वक्त ही नहीँ होता। मैँ तुम्हेँ जिंदगी की तकलीफोँ से जीतनेँ के लिये कुछ रास्ते सुझाना चाहता हूँ, लेकिन तुम मेरे सुझावोँ को पुरानेँ जमानेँ का मानकर मुझे सुनना ही नहीँ चाहते। मैँ हमेशा चाहता हूँ कि अपनी सारी शक्ति तुममेँ उड़ेल दूँ। पहले जब तुम माता-पिता के पैर दबाते थे या उनके पैर छुते थे तब मैँ यह आशिर्वाद तुम पर उड़ेल देता था। अब तुम्हारे पास वक्त ही नहीँ होता है। पैर छुनेँ की जगह अब दुर से ही ‘हाय’ बोलकर निकल जाते हो।
कई बार सोँचता हूँ कि माता-पिता के रूप मेँ तुम्हारे कमरे मेँ घुसूं लेकिन इंटरनेट, फेसबुक या चैटिँग के बीच मेँ कहीँ तुम्हेँ Disturb ना कर बैठूं, यह सोँचकर झिझकता हूँ। तुम जब बाहर नौकरी पर होते हो तो हफ्तोँ तुमसे बात नहीँ होती।
तुम्हारा मनीआर्डर आता है तो आँख से आंसु टपक जाते हैँ, क्योँकि तुम्हारी जगह तुम्हारा मनीआर्डर कैसे ले सकता है। मन बस यही कहता था कि दो लाइन तुम फोन से बतिया लो या दो-चार महीनेँ मेँ वक्त निकालकर आ जाओ तो जीनेँ का आनंद आ जाए।
फिर सोँचता हूँ कि तुम उन संतानोँ से तो अच्छे हो जो अपनेँ माता-पिता का तिरस्कार करते हैँ या उन्हेँ व्रिध्दाश्रम मेँ छोड़ देते हैँ। आज तुम्हेँ बताना चाहता हूँ कि मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च सब जगह मेरा निर्जीव स्वरूप है। मेरा जीवित स्वरूप तुम्हारे घर मेँ तुम्हारे माता-पिता हैँ। उनकी जिंदगी मेँ खुशियाँ भर दो, मैँ तुम्हारी झोली मेँ काशी, मथुरा, मक्का, मदीना सबका पुण्य लाकर डाल दुँगा।
मुझे खुश रखनेँ का एक और तरीका है। मुझे खुश करना है तो अपनेँ आस-पास के हर बच्चे को खुश रखो।
मुश्किल और कमी मेँ पड़े नन्हेँ बच्चोँ की तकलीफ दुर करो और आंसु पोँछो। जब भी ऐसे बच्चे देखकर तुम्हेँ मुस्कुरायेँ तो समझना कि मैँ मुस्कुरा रहा हूँ। ये कैसी विडंबना है कि अपनेँ बच्चे की आंख मेँ कतरा आंसु भी नहीँ देख सकते और दूसरे नन्हेँ बच्चोँ से ढेर सारा काम कराते हुये लोगोँ की आत्मा नहीँ कलपती।
भाग्य की चिंता मत करो क्योँकि मैँ ही भाग्यविधाता हूँ। तुम मुझे जितना खुश करोगे, मैँ तुम्हारे भाग्य मेँ उतनी ही खुशियाँ डालता चला जाऊंगा। यकीन न हो तो आजमा कर देख लो।
तुम्हारा दोस्त
ईश्वर
Friends इस Article से हमेँ एक बहूत अच्छी बात और भी सीखनेँ को मिलती है कि भगवान सचमुच प्रार्थना से खुश नहीँ बल्कि प्रेम से खुश होते हैँ।
सफल होनेँ का मतलब यह नहीँ कि आप अपनी उन जिम्मेदारियोँ को ही भुल जायेँ जो आपके माता पिता के प्रति आपकी हैँ।
इंसानियत का भाव आदमी के अंदर हमेशा जिँदा रहना चाहिये, चाहे वो कितनेँ बड़े मुकाम पर भी क्योँ न पहूँच गया हो।