धनवान होनेँ के बावजूद भी उसकी नजर प्रजा के जमीनोँ पर थी।
एक दिन उनके राज्य मेँ बहूत ही पहूँचे हूये एक चमत्कारी साधु आये।
लोगोँ का मानना था कि साधु के दर्शन मात्र से ही
किसी भी व्यक्ति की मनोकामना पुरी हो जाती है।
एक दिन राजा को इस बात का पता चला। राजा बहूत ही लालची था, पता चलते ही
वह तुरंत मंदिर की ओर चल दिया क्योँकि मंदिर मेँ वो सन्यासी ठहरे हूए थे।
राजा नेँ सन्यासी को प्रणाम बोला और कहा कि महोदय आप इस मंदिर मेँ क्योँ
ठहरे हैँ आपको कष्ट नहीँ हो रहा क्या? साधु नेँ हँसकर जवाब दिया और कहा
कि पुत्र मुझे यहाँ किसी भी चीज की कमी नहीँ है मैँ यहाँ बिल्कुल ठीक
हूँ, बहूत आराम से हूँ आप मेरी चिँता ना करेँ। लेकिन राजा नेँ बहूत जिद
किया कि वो उनके महल मेँ जाकर रहेँ। बहूत मनानेँ पर सन्यासी उनके घर
जानेँ के लिये मान गये।
सन्यासी भी उनके महल मेँ जानेँ के लिये मान गये। राजा मन ही मन खुश हो
रहे थे कि दर्शन मात्र से मनोकामना पुरी हो सकती है तो महाराज तो खुद
पधार रहे हैँ। अब तो मेरी किस्मत खुलनेँ वाली है।
राजा नेँ सन्यासी को अपना कमरा दिखाया, कमरे मेँ बहूत ही ज्यादा आभुषण और
सोनेँ और चांदी के कई बर्तन रखे हूये थे।
सज्जन नेँ राजा से कहा कि राजन क्या आप अपनी तिजोरी दिखा सकते हैँ। इतना
पुछते ही राजा तो खुश हो पड़े कि सचमुच मेरी किस्मत बदल जायेगी। राजा नेँ
अपनी तिजोरी दिखाई। तिजोरी मेँ बहूत आभुषण और पैसोँ की गड्डियाँ थीँ।
सन्यासी नेँ राजा से पुछा कि क्या मैँ इन्हेँ छु सकता हूँ? राजा नेँ कहा
जरूर महाराज, आप शौँक से छुइये।
सन्यासी नेँ सभी चीजोँ को अपनेँ हाथोँ से छु लिया।
सन्यासी नेँ राजा से कहा कि राजन आज मैँ तुम्हारे जितना ही अमीर हो गया
जितना तुम अमीर हो आज मैँ भी हो गया।
राजन अब मैँ भी राजा बन गया मैनेँ तुम्हारे धन को देख लिया और इन्हेँ छु
भी लिया ना। बाकि जो दाल रोटी तुम खाते हो वो मैँ भी खाता हूँ।
सन्यासी की बात राजा समझ गया कि जिँदगी मेँ धन बहूत कुछ तो है पर सब कुछ नहीँ।
Friends दौलत सब कुछ नहीँ होता हैँ हाँलाकि हम दौलत को ही सब समझते हैँ
लेकिन पैसा कुछ क्षण का सुख है जीवन भर का नहीँ।