एक गांव में एक साधू महात्मा रहते थे, सारा गांव उनका भक्त था. सुबह-सुबह वे अपनी कुटिया के बाहर टहल रहे थे तभी एक वृद्ध महिला अपने छः साल के बच्चे को उनके पास लेकर आई और महात्मा जी से विनम्र निवेदन करने लगी कि उसका नाती बहुत ज्यादा गुड़ खाता है, गुड़ की मिठास उसकी बहुत बड़ी आदत बन गई है और यदि महात्मा जी उसके नाती को समझा दें तो वह गुड़ खाना बंद कर देगा.. उस समय महात्मा जी ने लड़के से कुछ नहीं कहा बल्कि उस वृद्ध महिला से कहा कि कृपया करके आप एक सप्ताह बाद इस लड़के को अपने साथ लेकर आयें!
एक सप्ताह बीतने के बाद जब वह वृद्ध महिला साधू महात्मा जी के पास गई तब उन्होंने उसे एक महीने के बाद आने को कहा. एक महीने बाद जब वह महिला अपने नाती को लेकर आई, तो महात्मा जी ने नाती को गोद में बैठाकर उसके सर पर हाथ रखते हुए बहुत प्रेम से कहा, “बेटा, ज्यादा गुड़ खाना अच्छी बात नहीं होती, इसलिए तुम ज्यादा गुड़ मत खाया करो, किसी चीज की अति सेहत के लिए अच्छी नहीं होती…” साधू के समझाने के पश्चात वृद्ध महिला अपने नाती को लेकर वहाँ से चली गई.
एक महीने के बाद वह साधू जी से मिलने फिर आई और उसने कहा, “साधू महाराज, लड़के ने आपकी बात मान ली है. उसने गुड़ खाना कम कर दिया है. लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आई, आपने उससे जो दो वाक्य कहे, वह आप उस दिन भी तो कह सकते थे, जिस दिन मैं उसे लेकर पहली बार आपके पास आई थी. लेकिन उस दिन आपने मुझे एक सप्ताह बाद आने को कहा और जब मैं एक सप्ताह बाद आई तो आपने मुझसे एक महीने के बाद आने के लिए कहा! ऐसा क्यों?”
महात्मा जी मुस्कुराते हुए बोले, “मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि गुड़ मुझे भी बहुत पसंद था और मैं भी बहुत ज्यादा गुड़ खाता था और जब मैं खुद ज्यादा गुड़ खाता था तो मैं लड़के को कैसे रोकता कि वह ज्यादा गुड़ न खाए.. इसलिए पहले मैंने अपना गुड़ खाना कम किया और इसी कारण मुझे उसे समझाने में इतना अधिक समय लगा….
मित्रों इस कहानी से आप समझ ही चुके होंगे कि यदि हमे दूसरों को सुधारना है तो पहले खुद को सुधारना होगा.. यदि कोई व्यक्ति किसी गलत आदत का आदी हो चूका है तो वह सामने वाले को (जो गलत लतों का आदी है) कैसे सुधार पायेगा… इसी प्रकार सबसे पहले हमे खुद को सुधारना है, खुद की परीक्षा लेनी है तभी हम दूसरों की कमियों को दूर करने में, उनकी गलतियाँ सुधारने में उनका साथ दे पाएंगे!!!
धन्यवाद!