एक व्यक्ति ने कहीं पढ़ा था कि गंगा के किनारे पड़े पत्थरों में से एक पत्थर पारस का भी है, और जिसे छूते ही हर वस्तु स्वर्ण में बदल जाती है. इसी आश में कि पत्थर उसे मिल जाए, वह रोज ही गंगा किनारे घूमता, सारे पत्थरों को उलट-पलट कर देखता और पारस पत्थर न मिलने पर उसे वापस गंगा नदी में फेंक देता. वर्षों यही
क्रम चलता रहा लेकिन उसे पारस नहीं मिला, पर उसे पत्थर उठाकर, घुमा फिराकर गंगा जी में फेंकने की आदत-सी जरूर पड़ गयी.
एक दिन उसने एक पत्थर उठाया और इससे पहले कि वह समझ पाता कि वही पारस पत्थर है, उसने आदतवश उसे पानी में फेंक दिया. उस पत्थर ने उसके हाथ में पड़े रेत के कणों को छुआ था, वे सभी सोने के हो गए थे, पर पत्थर उसकी हाथ से निकल गया था. वर्षों की प्रतीक्षा के बदले कुछ सोने के कण ही उसके हाथ में रह गए थे और अब सिर्फ पछताने के अलावा उसके पास कुछ नहीं बचा था!
मित्रों मनुष्य भी ऐसे ही अवसर गंवाता रहता है और वो यह भूल जाता है कि भगवान ने उसे जीवन का प्रत्येक क्षण एक स्वर्गीय अवसर की तरह दिया है पर हर क्षण गंवाते-गंवाते उसे ऐसी आदत-सी पड़ जाती है कि ये पता ही नहीं चल पाता कि कौन-सा अवसर उसके जीवन में सौभाग्य ला सकता था. मित्रों हमेशा याद रखिये कि अवसर को पहचानने वाले ही जीवन में सफल हो पाते हैं. इसलिए अपने अवसर को पहचानने में कभी गलती न करें और उसे हाथ से यूँ छूटने न दें.
Thanks!