भगवान है कहाँ रे तू! motivational story in hindi

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सृष्टि का निर्माण करने के बाद, इस सृष्टि के रचनाकार या कहें विधाता, एक बहुत बड़ी दुविधा में पड़  गए। दुविधा और परेशानी का कारण था उनके द्वारा बनाये गए ये इंसान।  इंसान के साथ कुछ भी बुरा होता तो वे सृष्टि के रचनाकार को ऊपर देखकर चिल्लाते, अपना भड़ास निकालते थे। जब भी कोई मुसीबत आती तो इंसान, भगवान के द्वार में खड़े होकर अपनी परेशानियां गिनाया करते थे और उनसे कुछ न कुछ मांगते रहते थे। ऊपरवाला इससे बहुत दुखी था क्योंकि यह हर इंसान की बात बन गई थी कि वो अपने साथ कुछ भी घटित होने पर भगवान को दोष दिया करता था।

इन सभी समस्याओं के निराकरण के लिए एक दिन सृष्टिकर्ता ने अपने सभी देवताओं की बैठक बुलवाई और उन्होंने सभी देवताओं से कहा- “देवताओं! शायद मैं मनुष्य की रचना करके बहुत बड़े संकट में पड़ गया हूँ, कोई न कोई इंसान हर समय दुखी होकर मुझे सब जगह ढूंढता रहता है और वो मुझ तक पहुंचकर अपनी सारी परेशानियां साझा करता है और इसी कारण न तो मैं सही से ध्यान कर पा रहा हूँ और न ही कहीं शांतिपूर्वक रह पा रहा हूँ। ”

सभी देवतागण उनसे बोले- “भगवन! आप परमपिता हैं, हम आपकी किस प्रकार सहायता कर सकते हैं?”

भगवान ने कहा- ” देवताओं! कृपया मुझे कोई ऐसा स्थान बताइये जहाँ मानव नाम का यह प्राणी कभी न पहुँच सके!”

भगवान के इस प्रश्न को सुनकर सभी देवताओं ने अपना मत रखा और सर्वप्रथम,

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इंद्रदेव ने सलाह देते हुए कहा- “भगवन! आप हिमालय की चोटी में जाकर ध्यान करें, वहां कोई भी नहीं पहुँच सकता!”

भगवान बोले- “मानव बहुत प्रगति कर रहा है, उसके लिए हिमालय पर जाना कोई बड़ी बात नहीं है।”

पवन देव ने सलाह दी- “भगवन! आप अंतरिक्ष में चले जाएँ, वहां मानव नहीं पहुँच सकते। ”

भगवान ने कहा- “इंसान ने अपने दिमाग से अंतरिक्ष में जाने के लिए भी कई यन्त्र बना  लिए हैं, वे रॉकेट  की  सहायता से कभी भी पहुँच सकते हैं। ”

विष्णु देव ने कहा- “हे! सृष्टिकर्ता, आप समुद्र के अंदर छिप जाएँ, वहां तक न इंसान पहुँच पाएंगे और न ही उनकी आवाज।”

भगवान बोले- “यह पहले से प्रयोग किया जा चूका है, लेकिन इंसान मुझे खोजते हुए समुद्र के अंदर भी अपनी जहाज से आ जाते हैं। ”

भगवान उनकी सलाह से संतुष्ट नहीं थे और उनकी बातों ने उन्हें और भी निराश कर दिया। वे चिंतित होकर यही सोच रहे थे कि ऐसा कोई भी गुप्त स्थान नहीं जहाँ मैं शांतिपूर्वक रह सकूँ।

अंत में बुद्धिमान गणेश ने कहा- “भगवन! आप इंसान के ह्रदय में निवास कर जाइए। मनुष्य आपको सभी जगह ढूंढते हुए फिरता रहेगा लेकिन अपने ह्रदय के अंदर झांककर कभी भी नही देखेगा।”

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सृष्टिकर्ता को गणेश जी की बात समझ आ गयी और उन्होंने कहा- “गणेश! अब से जो भी इंसान मुझे ढूंढता हुआ जगह-जगह भटकता रहेगा और मुझे दायें, बाएं, ऊपर, नीचे, पहाड़-पर्वत, आकाश-पाताल, सभी दिशाओं में ढूंढेगा वो मुझ तक कभी भी नहीं पहुँच पायेगा और न ही उसकी आवाज कभी मुझ तक पहुंचेगी लेकिन जो इंसान मुझे खुद के अंदर और दूसरों के अंदर देखेगा, उसे ही मैं मिलूंगा और उसकी आवाज सुनूंगा। ”

ऐसा कहकर भगवान, मनुष्य के ह्रदय में जाकर बैठ गए निवास करने लगे।

लेकिन इंसान आज भी उन्हें अपनी अंतरात्मा में खोजने की बजाये, अन्य जगह में ढूंढते हुए मारा-मारा फिर रहे हैं।

धन्यवाद!

 

 

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