महाराज युधिष्ठर एक बहूत बड़े दानवीर और न्यायप्रिय थे। उनकी दरबार से कोई
भी भिक्षुक खाली हाथ नहीँ जाता था। वो गरीबोँ से बहूत प्रेम किया करते थे
और साथ ही साथ सबकी आवश्यकताओँ की पुर्ति भी किया करते थे।
एक दिन जब महाराज युधिष्ठिर अपनेँ महल मेँ एक लोकप्रिय नाटक देख रहे थे,
तब एक ब्राम्हण उनके यहाँ भिक्षादान लेनेँ पहूँचा, उस ब्राम्हण नेँ लोगोँ
से सुना था कि महाराज बहूत ही बड़े दानी हैँ। इस कारण वह भी एक उम्मीद के
साथ वहाँ आया था।
जब महाराज को खबर मिली कि उनके दरबार पर एक ब्राम्हण आये हैँ और वो
भिक्षा चाहते हैँ। तब उतनेँ ही समय वे नाटक देखकर दुसरे काम मेँ व्यस्त
हो गये थे। इसलिये उन्होँनेँ ब्राम्हण से बहूत ही विनम्र भाव से कहा कि
आप कल आ जाइये ब्राम्हण देवता। आज के लिये मैँ क्षमा प्रार्थी हूँ।
ये सुनकर ब्राम्हण वहाँ से चले गये।
युधिष्ठिर के पास मेँ बैठ उनके भाई भीम नेँ इस घटना को देखा और तुरंत वो
अपनेँ शहर मेँ ढोल बाजे के साथ चिल्लानेँ लगे कि बधाई हो बधाई हो मेरे
भैया युधिष्ठिर नेँ आज मौत को जीत लिया। आज के दिन को उन्होँने मौत पर
विजय पा ली। ऐसा कहकर भीम चिल्लानेँ लगे।
जब ये बात महाराज युधिष्ठिर के कानोँ तक पहूँची तब महाराज नेँ भीम को
बुलवाया और शहर मेँ ऐसा ढिँढोरा पीटनेँ का कारण पूछा।
भीम ने कहा- भैया, आपनेँ उस ब्राम्हण को अगले दिन आनेँ के लिये बोला है।
इसका मतलब यह हुआ कि आपको मालूम था कि आप 100% कल तक मतलब अगले दिन तक
जीवित रहेँगे। इस प्रकार आपनेँ मौत पर एक दिन के लिये जीत हासिल कर ली।
इसी कारण मैँ इतनी खुशी मना रहा हूँ।
ये सुनते ही युधिष्ठिर को अपनी गलती का एहसास हूआ और उन्होँने फौरन
ब्राम्हण को बुलवाकर भीक्षादान दिया।
और उन्होँनेँ एक बात गाँठ बांध ली कि अब वो किसी काम को कल पर नहीँ टालेँगे।
Friends हमेँ किसी भी काम को कल पर नहीँ टालना चाहिये।
एक नियम याद रखेँ कि
आज के काम को कल पर न टालना जितना जरूरी है,
उतना ही जरूरी है कल के काम का आज ही निर्धारण करना।